दैनिक प्रयोग की चीजें जैसे खिलौने, चिप्स, टिफिन बॉक्स, पानी की बोतलें, प्लास्टिक के कप के जरिए बच्चों के शरीर में विषाक्त पदार्थ प्रवेश करते हैं। लंबे समय तक इनके प्रयोग से बच्चों के पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, तंत्रिका तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, परिसंचरण तंत्र और पेशी तंत्र में गड़बड़ी हो सकती है। इन्हीं विषाक्त तत्वों के बारे में जानकारी दे रही हैं दीप्ति अंगरीश। टॉक्स, इस शब्द से शायद आप अब पूरी तरह से वाकिफ हो गए होंगे। पिछले दोतीन वर्षों में एक समझदारी वाला शब्द बन गया है, जिसके साथ जुड़ा है जीवनस्तर । यही वजह है कि अधिकांश लोग इस शब्द का प्रयोग करते हैं। इसका प्रयोग खाने-पीने के लिए कर रहे हैं। सरल शब्दों में कहें तो शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्तकरने की पद्धति ही डिटॉक्स है। आप डिटॉक्स डाइट अपनाते हैं, ताकि शरीर से जहरीले पदार्थ बाहर निकल जाएं और तन-मन और शरीर से पूरी तरह स्वस्थ हों। इसके लिए आप डिटॉक्स डाइट, उपवास, जैविक खाद्यपदार्थ, आयुर्वेदिक मालिश, मिट्टी लेपन आदि विभिन्न साधनों का प्रयोग करते हैं। लेकिन बच्चों के साथ हम ऐसा नहीं कर पाते हैं। बता दें कि डिटॉक्स जितना जरूरी आपके लिए है, उतना ही आवश्यक बच्चों के लिए भी है। आखिर बच्चे भी तो इस प्रदुषित वातावरण में जी रहे हैं। जहां हर चीज विषाक्त पदार्थों और रसायनों की चपेट में है माना कि इससे दूरी बनाना नामुमकिन है, पर इसके कुप्रभावों को शरीर से दूर करने के नियमित प्रयास किए जा सकते हैं। आप अपनी तरफ से कोशिश करते हैं कि बच्चों के संपर्क में नहीं आए विषैले तत्व। पर अनजाने से बहुत से विषैले कणों को बच्चा निगल जाता है। यह जहर बच्चा खुद नहीं लेता, बल्कि आप उसे देते हैं। हैरत में नहीं पड़िए। यह सौ फीसदी सच है। खिलौने, चिप्स, लंच बॉक्स, पानी की बोतलें, प्लास्टिक का कप आदि तो आप ही बच्चे को देते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि यह तो दैनिक प्रयोग का सामान है। इसमें विषाक्त तत्व कहां हैं? वैज्ञानिकों की मानें तो इन्हीं सामान से विषाक्त पदार्थ शरीर में प्रवेश करते हैं। एकदम से इनका कुप्रभाव शरीर पर नहीं दिखेगा, लेकिन लंबे अंतराल तक इनके प्रयोग से बच्चों के पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, तंत्रिका तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, परिसंचरण तंत्र और पेशी तंत्र में गड़बड़ी हो सकती है। ऐसे में यह जानकारी आपको होनी चाहिए कि कौन से विषाक्त तत्व अनजाने में बच्चे के शरीर में जा रहे हैं। हैरानी की बात है कि ये सभी विषाक्त तत्व दैनिक उपयोग की वस्तुएं हैं। जानते हैं पांच ऐसे ही प्रमुख तत्वों के बारे में। आर्सेनिकः आप बहुत चाव से बच्चे को डिब्बाबंद खाना या चावल से बने खाद्य पदार्थ, जैसे चिप्स और ब्रेड आदि खिलाते हैं। यह सोच कर कि ये पौष्टिक खाद्य बच्चे को सेहतमंद बनाएगा, लेकिन असल में यह धीमा जहर है। असल में आर्सेनिक कैंसरकारी तत्व है। अगर कम मात्रा में ही आर्सेनिक युक्त खाद्य पदार्थ का नियमित सेवन किया जाए तो बच्चा सिर दर्द, पेट दर्द, दिमागी अस्तव्यवस्तता और दस्त की शिकायत करेगा। वहीं अगर इसकी ज्यादा मात्रा का सेवन किया जाता है तो इसका सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। इससे भूलने की बीमारी, मधुमेह, दिल के रोग, उच्च रक्तचाप, तंत्रिका संबंधी समस्या, कैंसर, त्वचा संबधी रोग आदि हो सकते हैं। दूषित पानी में आर्सेनिक होता है। सो, सुनिश्चित करें कि बच्चा साफ-सुथरा पानी ही पिए। चूंकि चावल की खेती पानी में होती है, तो चावल में पानी में शुमार आर्सेनिक तत्व हो सकते हैं। इन्हें निकालने के लिए चावल को पानी में धोकर ही बच्चों को खाने दें। आर्सेनिक इतना घातक है कि प्राचीन यूनान में अपराधियों को मटर के दाने जितना आर्सेनिक दिया जाता था। लीड : बैटरी, पाइप, गैजेट्स और खिलौनों में लीड होता है। जब बच्चे इन्हें मुंह में लेते हैं, तब यह विषाक्तता का कारण बनता है। बीपीए (बिस्फेनॉल ए): यह प्लास्टिक में पाया जाता है, जिनमें खाद्य पदार्थों को संचित किया जाता है। कई बार यह बीपीए लड़कियों में शीघ्र यौवन का कारण भी बनता है। फ्लोराइड: फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट कैविटी को रोकने का अच्छा तरीका हैलेकिन इसकी अधिकता से कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी होती हैं, जैसे हड्डियों का कमजोर होना आदि। इसलिए बच्चों को फ्लोराइड रहित टूथपेस्ट देना चाहिए। कीटनाशक: आज सभी फल, सब्जियों पर कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है। फल और सब्जियों को अच्छे से धोकर खाने से कीटनाशकों का असर शून्य हो जाता है। बच्चों में डिटॉक्स का प्रयास: आपका बच्चा सेहतमंद रहे। इसके लिए डिटॉक्स बहुत जरूरी है। यह कोई एक दिन की क्रिया नहीं है, इसलिए रोजाना बच्चों को डिटॉक्स करवाएं। जीवनशैली में बदलाव से ही यह संभव होगा। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थः प्लास्टिक में मौजूद बीपीए (बिस्फेनॉल ए) रिसता हुआ खाने में प्रवेश करता है। घर में प्लास्टिक की बोतलों की जगह स्टील या कांच की बोतलों का प्रयोग करें। जहां तक संभव हो सके खाने को परोसने, बनाने और संचित करने के लिए प्लास्टिक का उपयोग न करें। इसकी जगह कांच, स्टील, मिट्टी या अन्य धातु का इस्तेमाल करें। ऑर्गेनिक खाना: फल-सब्जी की खरीदारी सुपरमार्केट की बजाय सब्जी मंडी से करें।
विचारणीय बच्चों के खानपान का रखें ध्यान